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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 79
श्लोक
3.11.79
अगस्त्य इति विख्यातो लोके स्वेनैव कर्मणा।
आश्रमो दृश्यते तस्य परिश्रान्तश्रमापह:॥ ७९॥
अनुवाद
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अगस्त्य ऋषि के कर्मों का ही परिणाम था कि दुनिया में वे अगस्त्य के नाम से प्रसिद्ध हुए। यह वही आश्रम है जिसे उन्होंने बनाया था और जो थके-माँदे पथिकों की थकान मिटाने के लिए जाना जाता था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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