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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 78
श्लोक
3.11.78
स्निग्धपत्रा यथा वृक्षा यथा क्षान्ता मृगद्विजा:।
आश्रमो नातिदूरस्थो महर्षेर्भावितात्मन:॥ ७८॥
अनुवाद
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यहाँ जो वृक्ष हैं, उनके पत्ते जैसे वर्णन में सुने गए थे, ठीक वैसा ही चिकने दिखाई देते हैं और यहाँ रहने वाले सभी पशु और पक्षी क्षमाशील और शांतचित्त हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि शुद्ध अंतःकरण वाले महर्षि अगस्त्य का आश्रम यहाँ से बहुत दूर नहीं है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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