श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 74-76
 
 
श्लोक  3.11.74-76 
 
 
नीवारान् पनसान् सालान् वञ्जुलांस्तिनिशांस्तथा।
चिरिबिल्वान् मधूकांश्च बिल्वानथ च तिन्दुकान्॥ ७४॥
पुष्पितान् पुष्पिताग्राभिर्लताभिरुपशोभितान्।
ददर्श राम: शतशस्तत्र कान्तारपादपान्॥ ७५॥
हस्तिहस्तैर्विमृदितान् वानरैरुपशोभितान्।
मत्तै: शकुनिसङ्घैश्च शतश: प्रतिनादितान्॥ ७६॥
 
 
अनुवाद
 
  श्री राम ने वहाँ मार्ग में जंगलों में नीवार (जलकदम्ब), कटहल, साखू, अशोक, तिनिश, चिरिबिल्व, महुआ, बेल, तेंदू और सैकड़ों वृक्ष देखे, जो फूलों से लदे थे और खिली हुई लताओं से घिरे हुए अत्यंत सुंदर दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। हाथियों ने अपनी सूंडों से कई वृक्षों को तोड़कर नष्ट कर दिया था और इनमें से कई वृक्षों पर बैठे हुए वानरों ने दृष्टि को मनभावन बना दिया था। सैकड़ों मतवाले पक्षी उनकी डालियों पर मधुर ध्वनि कर रहे थे, जिससे वन का वैभव और भी बढ़ गया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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