श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 73
 
 
श्लोक  3.11.73 
 
 
गम्यतामिति तेनोक्तो जगाम रघुनन्दन:।
यथोद्दिष्टेन मार्गेण वनं तच्चावलोकयन्॥ ७३॥
 
 
अनुवाद
 
  तब महर्षि ने कहा, "बहुत अच्छा, जाओ।" महर्षि से आज्ञा पाकर भगवान श्री राम सुतीक्ष्ण द्वारा बताए गए मार्ग से वन की सुंदरता का अवलोकन करते हुए आगे बढ़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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