श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 72
 
 
श्लोक  3.11.72 
 
 
अभिवादये त्वां भगवन् सुखमस्म्युषितो निशाम्।
आमन्त्रये त्वां गच्छामि गुरुं ते द्रष्टुमग्रजम्॥ ७२॥
 
 
अनुवाद
 
  भगवन मैं आपके चरणों में नमन करता हूँ। मैंने यहाँ बहुत ही सुख से रात व्यतीत की। अब मैं आपके बड़े भाई मुनिराज अगस्त्य का दर्शन करना चाहता हूँ। इसके लिए मैं आपसे आज्ञा चाहता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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