श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 71
 
 
श्लोक  3.11.71 
 
 
तस्यां रात्र्यां व्यतीतायामुदिते रविमण्डले।
भ्रातरं तमगस्त्यस्य आमन्त्रयत राघव:॥ ७१॥
 
 
अनुवाद
 
  जब रात बीत गई और सूर्य का तेज दिखाई देने लगा, तब भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने अगस्त्य जी के भाई को प्रणाम किया और उनसे विदा ली।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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