श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 70
 
 
श्लोक  3.11.70 
 
 
सम्यक्प्रतिगृहीतस्तु मुनिना तेन राघव:।
न्यवसत् तां निशामेकां प्राश्य मूलफलानि च॥ ७०॥
 
 
अनुवाद
 
  राघव श्रीराम ने उस ऋषि के साथ आतिथ्य-सत्कार स्वीकार कर स्वयं लक्ष्मण सहित माता सीता के साथ एक रात उस आश्रम में गुजारी और वहाँ रहकर उन्होंने फल-मूल आदि ही खाया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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