श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 68
 
 
श्लोक  3.11.68 
 
 
एवं कथयमानस्य तस्य सौमित्रिणा सह।
रामस्यास्तं गत: सूर्य: संध्याकालोऽभ्यवर्तत॥ ६८॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरामचन्द्रजी लक्ष्मण जी के साथ इस प्रकार बातचीत कर रहे थे। तभी सूर्यदेव अस्त हो गये और संध्या का समय आ गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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