श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 67
 
 
श्लोक  3.11.67 
 
 
तस्यायमाश्रमो भ्रातुस्तटाकवनशोभित:।
विप्रानुकम्पया येन कर्मेदं दुष्करं कृतम्॥ ६७॥
 
 
अनुवाद
 
  तटकों और वनों की सुशोभता से यह आश्रम सजा है, यह उस महर्षि अगस्त्य के भाई का है, जिन्होंने ब्राह्मणों पर दया करके यह दुष्कर कार्य किया था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.