श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 66
 
 
श्लोक  3.11.66 
 
 
सोऽभ्यद्रवद् द्विजेन्द्रं तं मुनिना दीप्ततेजसा।
चक्षुषानलकल्पेन निर्दग्धो निधनं गत:॥ ६६॥
 
 
अनुवाद
 
  ज्योंहि उसने ब्राह्मणों के राजा अगस्त्य ऋषि पर आक्रमण किया, त्योंही प्रखर तेजस्वी मुनि ने अपनी आग के समान दृष्टि से उस राक्षस को जलाकर भस्म कर दिया। इस प्रकार उसकी मृत्यु हो गई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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