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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 64
श्लोक
3.11.64
कुतो निष्क्रमितुं शक्तिर्मया जीर्णस्य रक्षस:।
भ्रातुस्तु मेषरूपस्य गतस्य यमसादनम्॥ ६४॥
अनुवाद
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जैसा कि मैंने देखा है, मैंने तेरे भाई राक्षस को अपने पेट में समा लिया और अब वह यमराज के निवास में पहुँच गया है। अब उसमें बाहर निकलने की शक्ति नहीं है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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