श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 63
 
 
श्लोक  3.11.63 
 
 
स तदा भाषमाणं तु भ्रातरं विप्रघातिनम्।
अब्रवीत् प्रहसन् धीमानगस्त्यो मुनिसत्तम:॥ ६३॥
 
 
अनुवाद
 
  जैसा कि वेदिका पर खड़े होकर विप्रघाती असुर ने भाई को पुकारा, तभी बुद्धिमान मुनिश्रेष्ठ अगस्त्य ने हंसकर उससे कहा:
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.