श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 62
 
 
श्लोक  3.11.62 
 
 
तत: सम्पन्नमित्युक्त्वा दत्त्वा हस्तेऽवनेजनम्।
भ्रातरं निष्क्रमस्वेति चेल्वल: समभाषत॥ ६२॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनन्तर श्राद्धकर्म सम्पन्न हो गया। ब्राह्मणों को अवनेजन के लिए जल देकर इल्वल ने कहा, "अब तुम बाहर चले जाओ।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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