श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  3.11.61 
 
 
अगस्त्येन तदा देवै: प्रार्थितेन महर्षिणा।
अनुभूय किल श्राद्धे भक्षित: स महासुर:॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय देवताओं ने महर्षि अगस्त्य से प्रार्थना की। तब महर्षि अगस्त्य ने श्राद्ध में शाकरूपधारी असुर को जानबूझकर भक्षण कर लिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.