श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  3.11.59 
 
 
ततो भ्रातुर्वच: श्रुत्वा वातापिर्मेषवन्नदन्।
भित्त्वा भित्त्वा शरीराणि ब्राह्मणानां विनिष्पतत्॥ ५९॥
 
 
अनुवाद
 
  वातापि ने अपने भाई की बात सुनकर हंसी की आवाज़ सुनाई और मेढ़े की तरह ‘में-में’ करते हुए ब्राह्मणों के पेट फाड़कर बाहर निकल आया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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