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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 58
श्लोक
3.11.58
ततो भुक्तवतां तेषां विप्राणामिल्वलोऽब्रवीत्।
वातापे निष्क्रमस्वेति स्वरेण महता वदन्॥ ५८॥
अनुवाद
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जब वो ब्राह्मण अपना भोजन कर लेते, तब इल्वल बहुत ही ऊँची आवाज में बोलता था — ‘वातापे! बाहर निकलो’।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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