श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  3.11.55 
 
 
इहैकदा किल क्रूरो वातापिरपि चेल्वल:।
भ्रातरौ सहितावास्तां ब्राह्मणघ्नौ महासुरौ॥ ५५॥
 
 
अनुवाद
 
  एक बार की बात है, वहाँ क्रूर प्रवृत्ति वाले वातापि और इल्वल नाम के दो भाई साथ-साथ रहते थे। ये दोनों महान असुर ब्राह्मणों की हत्या करते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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