श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  3.11.54 
 
 
निगृह्य तरसा मृत्युं लोकानां हितकाम्यया।
यस्य भ्रात्रा कृतेयं दिक्शरण्या पुण्यकर्मणा॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
 
  इनके भाई पुण्यकर्मा अगस्त्य जी ने समस्त लोकों के हित की कामना से मृत्यु स्वरूप वातापि और इल्वल का वेग से दमन करके इस दक्षिण दिशा को शरण लेने लायक बना दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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