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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 53
श्लोक
3.11.53
तत: सुतीक्ष्णवचनं यथा सौम्य मया श्रुतम्।
अगस्त्यस्याश्रमो भ्रातुर्नूनमेष भविष्यति॥ ५३॥
अनुवाद
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सौम्य! जैसे मैंने सुतीक्ष्णजी से सुना था, यह निश्चित ही अगस्त्यजी के भाई का आश्रम होगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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