श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  3.11.52 
 
 
विविक्तेषु च तीर्थेषु कृतस्नाना द्विजातय:।
पुष्पोपहारं कुर्वन्ति कुसुमै: स्वयमर्जितै:॥ ५२॥
 
 
अनुवाद
 
  विविक्त एवं पवित्र तीर्थ स्थानों में स्नान करने के बाद द्विजगण अर्थात ब्राह्मण स्वयं द्वारा चयनित एवं एकत्रित किए गए पुष्पों से देवताओं को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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