श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  3.11.50 
 
 
तत्र तत्र च दृश्यन्ते संक्षिप्ता: काष्ठसंचया:।
लूनाश्च परिदृश्यन्ते दर्भा वैदूर्यवर्चस:॥ ५०॥
 
 
अनुवाद
 
  जहाँ तहाँ जंगल में लकड़ियों के गुच्छे दिखाई पड़ रहे हैं, और वे वैदूर्यमणि के समान प्रतीत हो रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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