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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 49
श्लोक
3.11.49
पिप्पलीनां च पक्वानां वनादस्मादुपागत:।
गन्धोऽयं पवनोत्क्षिप्त: सहसा कटुकोदय:॥ ४९॥
अनुवाद
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पवन के सहारे से आए इस वन से पकी हुई पीपलियों की यह गन्ध अचानक से यहाँ फैल गई है जिससे कटु रस का उदय हो रहा है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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