श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  3.11.48 
 
 
यथा हीमे वनस्यास्य ज्ञाता: पथि सहस्रश:।
संनता: फलभारेण पुष्पभारेण च द्रुमा:॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
 
  क्योंकि सुतीक्ष्णजी ने जैसा बतलाया था, उसके अनुसार इस वन की पगडंडी में फलों और फूलों के भार से झुके हुए सहस्रों परिचित वृक्ष अपनी शोभा बिखेर रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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