श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  3.11.47 
 
 
एतदेवाश्रमपदं नूनं तस्य महात्मन:।
अगस्त्यस्य मुनेर्भ्रातुर्दृश्यते पुण्यकर्मण:॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  सुमित्रा नंदन! यह निश्चित ही उस महात्मा अगस्त्य मुनि के भाई का आश्रम है, जो पुण्य कर्मों का अनुष्ठान करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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