श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  3.11.44 
 
 
इति रामो मुने: श्रुत्वा सह भ्रात्राभिवाद्य च।
प्रतस्थेऽगस्त्यमुद्दिश्य सानुग: सह सीतया॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  मुनि के इस कथन को सुनकर भगवान श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ उन्हें प्रणाम किया और सीता के साथ अगस्त्य ऋषि के आश्रम की ओर प्रस्थान कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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