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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 40-41
श्लोक
3.11.40-41
तत्रैकां रजनीं व्युष्य प्रभाते राम गम्यताम्।
दक्षिणां दिशमास्थाय वनखण्डस्य पार्श्वत:॥ ४०॥
तत्रागस्त्याश्रमपदं गत्वा योजनमन्तरम्।
रमणीये वनोद्देशे बहुपादपशोभिते॥ ४१॥
अनुवाद
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श्रीराम! एक रात उस आश्रम में रुककर प्रातःकाल दक्षिण दिशा की ओर उस वनखंड के किनारे-किनारे चलें। इस प्रकार एक योजन आगे जाने पर अनेक वृक्षों से सुशोभित वन के रमणीय भाग में अगस्त्य मुनि का आश्रम मिलेगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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