श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.11.4 
 
 
यूथबद्धांश्च पृषतान् मदोन्मत्तान् विषाणिन:।
महिषांश्च वराहांश्च गजांश्च द्रुमवैरिण:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  चित्रित हिरणों के झुंड एक साथ इधर-उधर जा रहे थे। वहीं, बड़े-बड़े सींगों वाले मतवाले भैंसे, बड़े दाँतों वाले जंगली सूअर और पेड़ों के दुश्मन हाथी दिखाई दे रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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