श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 38-39
 
 
श्लोक  3.11.38-39 
 
 
स्थलीप्रायवनोद्देशे पिप्पलीवनशोभिते।
बहुपुष्पफले रम्ये नानाविहगनादिते॥ ३८॥
पद्मिन्यो विविधास्तत्र प्रसन्नसलिलाशया:।
हंसकारण्डवाकीर्णाश्चक्रवाकोपशोभिता:॥ ३९॥
 
 
अनुवाद
 
  उस स्थल में प्राय: वन है तथा पिप्पलीवन उसकी शोभा बढ़ाता है। वहाँ बहुत सारे फूल और फल हैं। नाना प्रकार के पक्षियों के कलरव से गूँजते हुए उस रमणीय आश्रम के पास भाँति-भाँतिके कमलमण्डित सरोवर हैं, जो स्वच्छ जल से भरे हुए हैं। हंस और कारण्डव आदि पक्षी उनमें सब ओर फैले हुए हैं तथा चक्रवाक उनकी शोभा बढ़ाते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.