श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  3.11.37 
 
 
अयमाख्यामि ते राम यत्रागस्त्यो महामुनि:।
योजनान्याश्रमात् तात याहि चत्वारि वै तत:।
दक्षिणेन महान् श्रीमानगस्त्यभ्रातुराश्रम:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! महामुनि अगस्त्य जहाँ रहते हैं, उस आश्रम का पता मैं अभी तुम्हें बता देता हूँ। पुत्र! इस आश्रम से चार योजन दक्षिण की ओर जाओ। वहाँ तुम्हें अगस्त्य के भाई का बहुत बड़ा और सुंदर आश्रम मिलेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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