श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 35-36
 
 
श्लोक  3.11.35-36 
 
 
अहमप्येतदेव त्वां वक्तुकाम: सलक्ष्मणम्॥ ३५॥
अगस्त्यमभिगच्छेति सीतया सह राघव।
दिष्टॺा त्विदानीमर्थेऽस्मिन् स्वयमेव ब्रवीषि माम्॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! मैं भी लक्ष्मण सहित आपसे यही कहना चाहता था कि सीता के साथ महर्षि अगस्त्य के पास जायँ। सौभाग्य की बात है कि इस समय आप स्वयं ही मुझसे वहाँ जाने के विषय में पूछ रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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