श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 34-35h
 
 
श्लोक  3.11.34-35h 
 
 
यदहं तं मुनिवरं शुश्रूषेयमपि स्वयम्।
इति रामस्य स मुनि: श्रुत्वा धर्मात्मनो वच:॥ ३४॥
सुतीक्ष्ण: प्रत्युवाचेदं प्रीतो दशरथात्मजम्।
 
 
अनुवाद
 
  मैं स्वयं भी मुनिवर अगस्त्य की सेवा करना चाहता हूँ। यह धर्मात्मा श्रीराम का वचन सुनकर सुतीक्ष्ण मुनि बहुत प्रसन्न हुए और दशरथ नंदन से इस प्रकार बोले-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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