वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
»
श्लोक 34-35h
श्लोक
3.11.34-35h
यदहं तं मुनिवरं शुश्रूषेयमपि स्वयम्।
इति रामस्य स मुनि: श्रुत्वा धर्मात्मनो वच:॥ ३४॥
सुतीक्ष्ण: प्रत्युवाचेदं प्रीतो दशरथात्मजम्।
अनुवाद
play_arrowpause
मैं स्वयं भी मुनिवर अगस्त्य की सेवा करना चाहता हूँ। यह धर्मात्मा श्रीराम का वचन सुनकर सुतीक्ष्ण मुनि बहुत प्रसन्न हुए और दशरथ नंदन से इस प्रकार बोले-।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.