श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 30-31
 
 
श्लोक  3.11.30-31 
 
 
अस्मिन्नरण्ये भगवन्नगस्त्यो मुनिसत्तम:॥ ३०॥
वसतीति मया नित्यं कथा: कथयतां श्रुतम्।
न तु जानामि तं देशं वनस्यास्य महत्तया॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  हे भगवान्! मैंने प्रतिदिन बातचीत करने वाले लोगों के मुँह से यह सुना है कि इस जंगल में कहीं महामुनि अगस्त्य जी निवास करते हैं; लेकिन इस जंगल के फैलाव के कारण मैं उस स्थान को नहीं जान पाया हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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