श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 26-27h
 
 
श्लोक  3.11.26-27h 
 
 
तत्र संवसतस्तस्य मुनीनामाश्रमेषु वै॥ २६॥
रमतश्चानुकूल्येन ययु: संवत्सरा दश।
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार वे मुनिवरों के आश्रमों में रहते हुए आनंदपूर्ण वर्षों का अनुभव करते रहे और दस वर्ष बीत गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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