श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 24-26h
 
 
श्लोक  3.11.24-26h 
 
 
क्वचित् परिदशान् मासानेकसंवत्सरं क्वचित्॥ २४॥
क्वचिच्च चतुरो मासान् पञ्च षट् च परान् क्वचित्।
अपरत्राधिकान् मासानध्यर्धमधिकं क्वचित्॥ २५॥
त्रीन् मासानष्टमासांश्च राघवो न्यवसत् सुखम्।
 
 
अनुवाद
 
  कहीं दस महीने, कहीं एक साल, कहीं चार महीने, कहीं पाँच या छह महीने, कहीं इससे भी अधिक समय (यानी सात महीने), कहीं उससे भी अधिक (आठ महीने), कहीं आधे मास अधिक यानी साढ़े आठ महीने, कहीं तीन महीने और कहीं आठ और तीन यानी ग्यारह महीने तक श्रीरामचन्द्रजी ने आराम से निवास किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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