श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 23-24h
 
 
श्लोक  3.11.23-24h 
 
 
जगाम चाश्रमांस्तेषां पर्यायेण तपस्विनाम्॥ २३॥
येषामुषितवान् पूर्वं सकाशे स महास्त्रवित् ।
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् महान अस्त्रों को जानने वाले श्रीरामचंद्रजी, बारी-बारी से उन सभी तपस्वी मुनियों के आश्रमों में गए, जिनके यहाँ वे पहले रह चुके थे। उनके पास भी (उनकी भक्ति देख) दोबारा जाकर रहे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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