श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.11.21 
 
 
एवं कथयमान: स ददर्शाश्रममण्डलम्।
कुशचीरपरिक्षिप्तं ब्राह्मॺा लक्ष्म्या समावृतम्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  देखा श्रीरामचन्द्रजी ने एक आश्रम दिखलाई दे रहा है, जहाँ चारों ओर कुश और वल्कल वस्त्र बिछे हुए थे। वह आश्रम ब्रह्मतेज से प्रकाशित हो रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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