श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.11.20 
 
 
आश्चर्यमिति तस्यैतद् वचनं भावितात्मन:।
राघव: प्रतिजग्राह सह भ्रात्रा महायशा:॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
   अपने भाई के साथ श्री रघुनाथ जी ने उन भावितात्मा महर्षि के इस कथन को "यह तो बड़े आश्चर्य की बात है" इस प्रकार कहकर स्वीकार कर लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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