श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.11.18 
 
 
तत्रैवाप्सरस: पञ्च निवसन्त्यो यथासुखम्।
रमयन्ति तपोयोगान्मुनिं यौवनमास्थितम्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  तपस्या के प्रभाव से युवावस्था को प्राप्त हुए मुनि की सेवा में पाँचों अप्सराएँ उसी घर में खुशी-खुशी रहती हैं और उसे संतुष्ट करती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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