श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.11.14 
 
 
अस्माकं कस्यचित् स्थानमेष प्रार्थयते मुनि:।
इति संविग्नमनस: सर्वे तत्र दिवौकस:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  हाँ, ऐसा लगता है कि यह मुनि हममें से किसी के स्थान को लेने की इच्छा रखता है, यह सोचकर सभी देवता वहाँ मन-ही-मन उद्विग्न हो उठे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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