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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 10
श्लोक
3.11.10
तेनैवमुक्तो धर्मात्मा राघवेण मुनिस्तदा।
प्रभावं सरस: क्षिप्रमाख्यातुमुपचक्रमे॥ १०॥
अनुवाद
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धर्मभृत् नाम के धर्मात्मा ऋषि ने तुरंत ही श्रीराम के इस प्रकार पूछने पर उस सरोवर के प्रभाव का वर्णन करना शुरू कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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