श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 10: श्रीराम का ऋषियों की रक्षा के लिये राक्षसों के वध के निमित्त की हुई प्रतिज्ञा के पालन पर दृढ़ रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.10.21 
 
 
सदृशं चानुरूपं च कुलस्य तव शोभने।
सधर्मचारिणी मे त्वं प्राणेभ्योऽपि गरीयसी॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  "शोभने! तुम्हारे इस कथन में तुम्हारी योग्यता ही नहीं झलक रही है, बल्कि यह तुम्हारे कुल के अनुरूप भी है। तुम मेरी सधर्मिणी हो और मेरे लिए प्राणों से भी अधिक प्रिय हो।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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