श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 10: श्रीराम का ऋषियों की रक्षा के लिये राक्षसों के वध के निमित्त की हुई प्रतिज्ञा के पालन पर दृढ़ रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 20-21h
 
 
श्लोक  3.10.20-21h 
 
 
मम स्नेहाच्च सौहार्दादिदमुक्तं त्वया वच:॥ २०॥
परितुष्टोऽस्म्यहं सीते न ह्यनिष्टोऽनुशास्यते।
 
 
अनुवाद
 
  सीते! तुमने प्रेम और मित्रता के नाते जो बातें मुझसे कहीं, उनसे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। क्योंकि जो अपना प्रिय न हो, उसे कोई हितकारी उपदेश नहीं देता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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