श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 10: श्रीराम का ऋषियों की रक्षा के लिये राक्षसों के वध के निमित्त की हुई प्रतिज्ञा के पालन पर दृढ़ रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 19-20h
 
 
श्लोक  3.10.19-20h 
 
 
तदवश्यं मया कार्यमृषीणां परिपालनम्॥ १९॥
अनुक्तेनापि वैदेहि प्रतिज्ञाय कथं पुन:।
 
 
अनुवाद
 
  इसलिए ऋषियों की रक्षा करना मेरा परम धर्म है। विदेह नन्दिनी! ऋषियों ने कहे बिना ही मैं उनकी रक्षा करता, फिर जब उन्होंने स्वयं कहा और मैंने प्रतिज्ञा भी कर ली, तो अब मैं कैसे उनकी रक्षा से मुँह मोड़ सकता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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