श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 10: श्रीराम का ऋषियों की रक्षा के लिये राक्षसों के वध के निमित्त की हुई प्रतिज्ञा के पालन पर दृढ़ रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 15-16h
 
 
श्लोक  3.10.15-16h 
 
 
तेन शापं न मुञ्चामो भक्ष्यमाणाश्च राक्षसै:।
तदर्द्यमानान् रक्षोभिर्दण्डकारण्यवासिभि:॥ १५॥
रक्ष नस्त्वं सह भ्रात्रा त्वन्नाथा हि वयं वने।
 
 
अनुवाद
 
  इसलिए हे प्रभु, राक्षसों के ग्रास बन जाने पर भी हम उन्हें शाप नहीं देते हैं। अतः दण्डकारण्य में रहने वाले राक्षसों से पीड़ित हुए हम तपस्वियों की आप भाई सहित रक्षा करें; क्योंकि इस वन में अब आप ही हमारे रक्षक हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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