श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 10: श्रीराम का ऋषियों की रक्षा के लिये राक्षसों के वध के निमित्त की हुई प्रतिज्ञा के पालन पर दृढ़ रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 13-14
 
 
श्लोक  3.10.13-14 
 
 
कामं तप:प्रभावेण शक्ता हन्तुं निशाचरान्॥ १३॥
चिरार्जितं न चेच्छामस्तप: खण्डयितुं वयम्।
बहुविघ्नं तपो नित्यं दुश्चरं चैव राघव॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! यद्यपि हम तपस्या के पराक्रम से इन राक्षसों का वध कर सकते हैं, परन्तु हम चिरकाल से उपार्जित तप को तोड़ना नहीं चाहते हैं क्योंकि तप में अनेक बाधाएँ आती हैं और इसका पालन करना भी बहुत कठिन है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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