श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 10: श्रीराम का ऋषियों की रक्षा के लिये राक्षसों के वध के निमित्त की हुई प्रतिज्ञा के पालन पर दृढ़ रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 11-12h
 
 
श्लोक  3.10.11-12h 
 
 
होमकाले तु सम्प्राप्ते पर्वकालेषु चानघ॥ ११॥
धर्षयन्ति सुदुर्धर्षा राक्षसा: पिशिताशना:।
 
 
अनुवाद
 
  ‘निष्पाप रघुनन्दन! अग्निहोत्रका समय आनेपर तथा पर्वके अवसरोंपर ये अत्यन्त दुर्धर्ष मांसभोजी राक्षस हमें धर दबाते हैं॥ ११ १/२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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