श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 10: श्रीराम का ऋषियों की रक्षा के लिये राक्षसों के वध के निमित्त की हुई प्रतिज्ञा के पालन पर दृढ़ रहने का विचार प्रकट करना  »  श्लोक 10-11h
 
 
श्लोक  3.10.10-11h 
 
 
सर्वैरेव समागम्य वागियं समुदाहृता।
राक्षसैर्दण्डकारण्ये बहुभि: कामरूपिभि:॥ १०॥
अर्दिता: स्म भृशं राम भवान् नस्तत्र रक्षतु।
 
 
अनुवाद
 
  तब सब लोगों ने एक स्वर में कहा- "हे श्रीराम! दण्डकारण्य में बहुत सारे राक्षस रहते हैं जो अपनी इच्छानुसार रूप बदल सकते हैं। इन राक्षसों से हमें बहुत कष्ट हो रहा है, इसलिए आप यहाँ आकर हमारे डर को दूर करें।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.