वहाँ का प्रदेश इतना सुंदर और मनोरम था कि अप्सराएँ प्रतिदिन वहाँ आकर नृत्य करती थीं। उस स्थान के प्रति उनके मन में बड़ा आदर और सम्मान का भाव था। बड़ी-बड़ी अग्निशालाएँ, सुवा जैसे यज्ञपात्र, मृगचर्म, कुश, समिधा, जल से भरे कलश और फल-मूल उस आश्रम की शोभा बढ़ाते थे। स्वादिष्ट फल देने वाले पवित्र और विशाल वृक्षों से वह आश्रममण्डल घिरा हुआ था।