श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का तापसों के आश्रम मण्डल में सत्कार  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  3.1.4-5 
 
 
पूजितं चोपनृत्तं च नित्यमप्सरसां गणै:।
विशालैरग्निशरणै: स्रुग्भाण्डैरजिनै: कुशै:॥ ४॥
समिद्भिस्तोयकलशै: फलमूलैश्च शोभितम्।
आरण्यैश्च महावृक्षै: पुण्यै: स्वादुफलैर्वृतम्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  वहाँ का प्रदेश इतना सुंदर और मनोरम था कि अप्सराएँ प्रतिदिन वहाँ आकर नृत्य करती थीं। उस स्थान के प्रति उनके मन में बड़ा आदर और सम्मान का भाव था। बड़ी-बड़ी अग्निशालाएँ, सुवा जैसे यज्ञपात्र, मृगचर्म, कुश, समिधा, जल से भरे कलश और फल-मूल उस आश्रम की शोभा बढ़ाते थे। स्वादिष्ट फल देने वाले पवित्र और विशाल वृक्षों से वह आश्रममण्डल घिरा हुआ था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.