श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का तापसों के आश्रम मण्डल में सत्कार  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.1.21 
 
 
न्यस्तदण्डा वयं राजञ्जितक्रोधा जितेन्द्रिया:।
रक्षणीयास्त्वया शश्वद् गर्भभूतास्तपोधना:॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन! हमने जीवों को दंड देना छोड़ दिया है, क्रोध पर नियंत्रण पा लिया है और अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है। अब हमारे पास केवल तपस्या ही धन है। जैसे माँ गर्भ में अपने बच्चे की रक्षा करती है, उसी प्रकार आपको भी हमारी हमेशा हर तरह से रक्षा करनी चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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