श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का तापसों के आश्रम मण्डल में सत्कार  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.1.2 
 
 
कुशचीरपरिक्षिप्तं ब्राह्मॺा लक्ष्म्या समावृतम्।
यथा प्रदीप्तं दुर्दर्शं गगने सूर्यमण्डलम्॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  वहाँ कुश के बने हुए आसन थे और ऋषियों के वल्कल वस्त्र रखे थे। उस आश्रम में ऋषियों की ब्रह्मविद्या के अभ्यास से प्रकट हुए अद्भुत तेज के कारण आकाश में प्रकाशमान सूर्य मण्डल की तरह वह आश्रम भूमि पर प्रकाशित हो रहा था। राक्षसों के लिए भी उसकी झलक भी देखना कठिन था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.