वहाँ कुश के बने हुए आसन थे और ऋषियों के वल्कल वस्त्र रखे थे। उस आश्रम में ऋषियों की ब्रह्मविद्या के अभ्यास से प्रकट हुए अद्भुत तेज के कारण आकाश में प्रकाशमान सूर्य मण्डल की तरह वह आश्रम भूमि पर प्रकाशित हो रहा था। राक्षसों के लिए भी उसकी झलक भी देखना कठिन था।